वृंदा हाथ में बड़ी सी अटैची लेकर घर से बाहर निकल रही थी। उसका भाई उसे लेने आया था। आंसू भरी निगाहों से उसने विनय की ओर देखा। लेकिन आज वो वृंदा से नजरे नही मिला पा रहा था। क्योंकि आज वृंदा की आंखो में अनगिनत सवाल थे। और विनय के पास ना ही उसकी किसी बात का जवाब था। और ना ही उसके लिए दो तसल्ली भरे शब्द।
आज पहली बार ऐसा हो रहा था की वृंदा ने घर से बाहर निकलने से पहले घर के बड़ो के पैर ना छुए हो। घर की दहलीज पर आते ही वो पलभर के लिए रुक गई। उसे पुराने दिन याद आने लगे। जब वो आठ साल पहले यही दहलीज लांघ कर इस घर की बहू बन कर आयी थी। घर में आने के बाद उसके सुंदरता की, गुणों की और उसके स्वभाव की तारीफ करते घरवाले थकते नहीं थे। विनय भी हमेशा उसके आगे पीछे घूमता रहता।
दोनो ने लवमैरेज की थी। कॉलेज के दिनो से ही दोनो एक दूसरे के प्यार में गिरफ्त थे। जब शादी की बात चली तो वृंदा ने अपने घर में विनय के बारे में बताया। वृंदा के घर वाले तब दोनो की शादी के लिए तैयार नहीं थे। क्योंकि उस वक्त विनय और उसके घरवालों की आर्थिक स्थिति वृंदा के घरवालों से जरा कम थी। विनय की नौकरी भी काफी साधारण थी। इसीलिए वृंदा के घरवालों को लग रहा था की वृंदा उस घर में कैसे निभा पाएगी।
लेकिन वृंदा अपने फैसले पर अटल रही। उसने उसके घरवालों को यकीन दिलाया की वो हर परिस्थिति में विनय के साथ निभा लेगी। आखिर उसकी जिद के आगे उसके घरवालों ने शादी के लिए हा करदी और फिर धूमधाम से विनय और वृंदा की शादी हो गई।
जैसे की वृंदा ने कहा था उसने पूरे मन से गृहस्थी निभायी। अपनी ओर से कोई कमी नहीं रहने दी। कभी भी किसी चीज के लिए विनय से जिद नहीं की। उल्टा एकल परिवार की सारी जिम्मेदारियां आते ही अपने कंधो पर ले ली।
शुरू के दिन पंख लगाए उड़ गए। वृंदा की सासू मां उसकी तारीफ करते नही थकती थी। लेकिन जल्द ही ये दिन भी बीत गए और सब लोग बेसब्री से वृंदा और विनय के बच्चे का इंतजार करने लगे। क्योंकि शादी को अभी दो साल बीत चुके थे पर वृंदा ने अभी भी कोई खुशखबरी नही सुनाई थी।
वृंदा की सास उसे शहर के एक अच्छे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने वृंदा का चेक अप किया और बताया के उसके किसी भी तरह की कोई समस्या नही है। पर कभी कभी मां बनने में वक्त लग जाता है। डॉक्टर के कहने से सब लोग निश्चिंत हो गए थे। लेकिन इस बात को भी साल बीत गया पर वृंदा घर वालो को खुश खबरी नही सुना पायी। फिर एक दो हॉस्पिटल के और चक्कर लगाए। दो तीन डॉक्टर भी बदले पर कोई फायदा नही हुआ। आखिर घरवालों ने भगवान से मिन्नते मांगी। वृंदा भी भगवान के आगे काफी गिड़गिड़ाई। पर मां बनने का सुख उसे मिल नही पाया।
ऐसे ही दिन गुजरते जा रहे थे। उसकी मां बनने की आस अभी अधूरी थी। अब उसके ससुराल के लोगों का उसके प्रति रवैया बदलता जा रहा था। पहले उसके हर काम की तारीफ की जाती। पर अब घर के किसी भी काम में उसका हाथ लगना उनको नागवार गुजरता। सासू मां तो बात कम करती और ताने ज्यादा देती।
पहले घर के सभी लोग कहते की हमारी किस्मत अच्छी थी जो वृंदा हमारे घर में बहू बन के आई पर अब वही लोग कहते की इसने हमारे विनय को अपने जाल में फसाया। मां बाप ने भी अपनी बांझ बेटी की शादी इसीलिए अपने से कम हैसियत वालो के साथ करा दी। हमारे साथ धोखा किया है। घर को वारिस नही दे सकती तो ये किस काम की। ऐसी ही कई बाते वृंदा को सुननी पड़ती।
शुरू शुरू में तो विनय ने वृंदा का बहोत साथ दिया। उसे सहारा दिया। उसकी हिम्मत बना। पर धीरे धीरे अपनी मां के आगे उसकी कुछ चली नही। इसीलिए अब वो सब कुछ देख कर भी चुप ही रहता। वृंदा को बड़ा दुःख होता। पर विनय से बेइंतहा प्यार के कारण वो सब कुछ सहन कर लेती।
ऐसे में एक दिन सुबह अचानक उसे खबर मिली के उसके पिता नही रहे। उनको नींद में ही हार्ट अटैक आ गया था। इस खबर को सुनने के बाद वृंदा और भी ज्यादा अवसाद में चली गई। लेकिन उसका बड़ा भाई उस स्थिति में उसका सहारा बना। विनय भी साथ में था ही। पर दुख का साया भी मानो गहराता जा रहा था। ससुराल वालो के ताने, समाज में बांझ का तमगा ये सब सहन करती वृंदा सिर्फ एक ही आस पर जी रही थी के आज नही तो कल उसके घर भी किलकारी गूंजे गी। उसे भी मां बनने का अवसर प्राप्त होगा। पर जिंदगी आगे किस मोड़ पर जायेगी इस का उसे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था।
एक दिन उसकी बड़ी ननंद अचानक से घर पर आई। वह विनय के लिए अपने किसी रिश्तेदार की बेटी का रिश्ता लेकर आई थी। किचन में काम कर रही वृंदा को उनकी बाते साफ साफ सुनाई दे रही थी। या फिर ये कहे की उसको सुनाने के लिए ही जानबूझकर इतने जोर जोर से बाते चल रही थी। यह सब सुन कर तो मानो वृंदा के पैरों तले जमीन खिसक गई। कुछ पल के लिए उसके आंखो के सामने अंधेरा छा गया। लेकिन दूसरे ही पल उसने अपने आप को संभाल लिया। और जैसे की कुछ सुना ही न हो ऐसे जता कर अपनी ननद के लिए चाय नाश्ता लेकर आई।
उसे पता था की ननंद और सासू मां चाहे जितना भी कह दे या जोर लगा ले; पर विनय कभी भी दूसरी शादी के लिए हां नही करेगा। अभी भी बड़ा गुरुर था उसे अपने प्यार पर। पर ये घमंड भी जल्द ही दूर हो गया जब सासू मां और ननद के ज्यादा समझाने पर वो दूसरी शादी के लिए तैयार हो गया। वृंदा पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पहले ही मां बनने के सुख से दूर थी। अब तो बीवी होने का अधिकार भी छीनने जा रहा था।
जिस इंसान के प्यार के अंधी होकर उसने अपना सब कुछ उसपर न्यौछावर कर दिया। जिस के लिए अपने मां बाप से लडी उसी ने बीच मझधार में उसे अकेला छोड़ दिया था। वो बहुत ही ज्यादा दुखी थी। पर सबसे ज्यादा आहत वो तब हुई जब विनय ने उसे कहा की वो दूसरी शादी के बाद भी उसे अपने साथ रखने के लिए राजी है। पता नही कब विनय ने उसे इतना मजबूर और लाचार समझ लिया था। इतनी लाचार तो वह कभी ना थी। यह बात कुछ और थी की उसकी प्यार के वह बहोत बार गिड़गिड़ाई थी। पर अभी उसके अंदर का स्वाभिमान जिंदा था। जब खोखले प्यार की नीव ही हिल चुकी थी तो उसके साथ रहने से भी क्या फायदा होता। उसने तुरंत अपने मायके फोन किया और अपने बड़े भाई को सब कुछ बता दिया। बड़ा भाई भी आनन फानन में उसे लेने पहुंच गया।
वृंदा अपने भाई के साथ मायके आ गई। मायके में भी इन आठ सालों के काफी बदलाव हो चुके थे। जहा पहले मायके में उसके मां की चलती थी अब उसकी भाभी का राज था। वृंदा के हमेशा के लिए मायके आने से उसकी भाभी जरा भी खुश नहीं थी। पर उसके भाई और मां को उससे काफी सहानुभूति थी। और भाई के सामने भाभी कुछ भी बोल नही पाती थी। लेकिन पति के पीठ पीछे वो वृंदा को ताने देने से नही चूकती। इसी चक्कर में अब उसकी भाभी और उसकी मां की लड़ाई भी होने लगी थी। पर वृंदा अपने भाई से कभी कोई शिकायत नहीं करती। वो नही चाहती थी की उसकी वजह से उसके भाई की गृहस्थी खराब हो। और उसने इससे कई ज्यादा ताने और अवहेलना तो अपने ससुराल में सही थी। ये तो हालांकि उसका मायका था। जहा भाई और मां हमेशा उसके पीछे खड़े रहते।
पर अभी उसकी मां की उसकी भाभी के सामने ज्यादा न चलती। वृंदा कभी कभी अपनी भाभी की किचन में मदद करने के लिए जाती। पर भाभी के कुछ ना कहते हुए भी वह समझ जाती के वृंदा का किचन की चीजों को छूना या किसी भी तरह की मदद करना उसकी भाभी को नामंजूर था। वृंदा की स्थिति आए दिन बदतर होती जा रही थी। मां को उसका दुख समझता पर वो भी मजबूर थी। पर आखिर एक दिन भाई ने भाभी से वृंदा से किए सुलूक के लिए जवाब मांग ही लिया। तो भाभी ने सारा घर सर पर उठा लिया। रोना धोना और न जाने क्या क्या? अब उसका भाई भी उसे ज्यादा कुछ नहीं बोल पाता था।
ऐसे में एक दिन कोई रिश्तेदार घर पर आया हुवा था। बातो ही बातो मे उसने वृंदा के लिए रिश्ता सुझाया। लड़के का नाम कुणाल था। कुणाल को एक चार साल का बेटा था। एक साल पहले ही एक बीमारी में उसकी पहली बीवी चल बसी थी। पहले एक बेटा होने के कारण अब कुणाल के घरवालों को दूसरे बच्चे की चाहत नही थी। इसीलिए वृंदा की मां को ये रिश्ता वृंदा के लिए सही लगा। पर वृंदा को तो अब दूसरी शादी करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। उसने घरवालों को बताया कि वो सब सह सकती है लेकिन दूसरी शादी करना उसे मंजूर नहीं।
पर वृंदा की मां और भाई को ये रिश्ता वृंदा के लिए सबसे योग्य लग रहा था। क्योंकि वो दोनो हो जानते की वृंदा के लिए इतना बड़ा जीवन अकेले काटना काफी मुश्किल होगा। भले ही मां और भाई का साथ ही क्यों ना हो। एक तो अपने बच्चे का सुख नहीं और ऊपर से उसकी भाभी जिंदगी भर उसे ताने मारती रहेगी। लेकिन अगर कुणाल के साथ उसका रिश्ता हो जाए तो सौतेली ही सही पर मां तो कहलाएगी। कुणाल को भी उसके बारे में सबकुछ पता होने के बाद भी वो उससे शादी करने को तैयार था। इसका मतलब साफ था की अगर भविष्य में वृंदा से उसे औलाद की अपेक्षा नहीं थी।
मां और भाई के वृंदा को काफी समझाया। वृंदा भी अपने मां और भाई की चिंता से अवगत थी। इसके अलावा उसके भाभी को भी वो फूटी आंख नहीं सुहाती थी। उसके वजह से उसकी भाई की शादीशुदा जिंदगी में कोई दिक्कत ना हो इसीलिए वो ना चाहते हुए भी इस शादी के लिए बुझे मन से तैयार हो गई।
उसने यह भी सोचा कि भले ही इस शादी से उसे प्यार और सम्मान की अपेक्षा नहीं लेकिन फिर भी एक बिन मां के बच्चे को वो मां का सुख देने की पूरी कोशिश करेगी। और करे भी क्यों ना। आखिर उसी बच्चे की वजह से उसे औलाद का सुख मिलने वाला था। उसके इस फैसले से उसके घर के सारे लोग बहोत खुश थे। मां और भाई को खुशी थी की उसका घर एक बार फिर बसने वाला था। और भाभी को खुशी थी की उसकी ननद आखिर कार उसके घर से हमेशा के लिए चली जायेगी।
दोनो परिवारों ने आपस में बातचीत कर के एक अच्छा सा महूरत निकाला और सादगी से वृंदा और कुणाल की शादी ही गई। अपनी पहली शादी से मिले धोखे के बाद उसे इस शादी से कोई उम्मीद ही नही थी। लेकिन उसकी जिंदगी एकाएक ही बदल गई जब कुणाल का बेटा ओजस उसकी जिंदगी में आया। ओजस ने पहली बार मिलते ही उससे पूछा।
” मां…दादी के कहा है के आज के बाद से आप ही मेरी मां है। मैं आपको मां कहकर बुला सकता हु ना…?”
उस मासूम बच्चे के मुंह से मां शब्द सुन कर वृंदा तो जैसे खुशी से पागल हो रही थी। जिस शब्द के लिए वो पूरी जिंदगी भर तरसती आई थी वो शब्द जैसे ही उसके कान में पड़ा उसकी तो मानो सारी मुरादे पूरी हो गई। उसने खुशी से ओजस को अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। इन मां बेटे को ऐसे देख कर आज घरवालोकी आंखो में भी आंसू आ गए थे।
उस पल के बाद वो ओजस की मां बन गई। दोनो ने एक दूसरे को पूरे दिल से अपनाया था। उनके रिश्ते में सौतेलेपन की छाया दूर दूर तक कही भी दिखाई नही देती। ओजस के कारण वृंदा और कुणाल भी धीरे धीरे पास आने लगे थे। वो दोनो एक दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे। धीरे धीरे कुणाल और वृंदा में भी नजदीकिया बढ़ने लगी। और दोनो को गृहस्थी सही मायने में चलने लगी।
ऐसे में एक दिन वृंदा आंगन में कपड़े सूखते हुए अचानक ही चक्कर खाकर गिर गई। उसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। सभी घरवाले वृंदा तबीयत को लेकर चिंतित थे। कुणाल और ओजस तो वृंदा की हालत देख कर बहोत ही ज्यादा घबरा गए थे। लेकिन जब डॉक्टर ने वृंदा का चेक अप करने के बाद सबको बताया के वृंदा मां बनने वाली है तो सबको खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वृंदा को तो अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
लेकिन जब उसे पता चला की वो सच के मां बनने वालीं है तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। समाज ने जो उसके दामन में जो बांझ की तोहमत लगाई थी वो आज मिट गई थी। जिस दिन का उसने बरसो इंतजार किया वो दिन आया भी तो तब जब उसने सारी आस खो दी थी।
कुछ महीनो बाद वृंदा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। ओजस ने बड़े ही प्यार से अपनी छोटी बहन का नाम परी रखा था। परी के आ जाने से वृंदा और कुणाल का परिवार मानो पूरा हो गया था। ओजस और परी में भी बहोत ही अच्छी बॉन्डिंग थी।
पर इधर वृंदा का पहला पति विनय अब भी उसकी याद में आंसू बहाता था। उसे अभी भी इस बात का पछतावा था की उसमे कमी होने के बावजूद भी सब कुछ वृंदा को सहना पड़ा। और वो कुछ कह भी नही पाया। वृंदा के जाने के बाद विनय ने घरवालों के कहने पर और दो शादियां की। पर दोनो ही बीवियां ज्यादा दिनों तक उसके साथ रह नही पाई। और आज जिंदगी के इस मोड़ पर वो अकेला है। और उसका दोषी भी वो अपने आपको ही मानता है।
समाप्त।